वर्तमान समय में पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव होने है हर प्रदेश मे पार्टी अच्छा प्रदर्शन करने के लिए एडी से चोटी तक का जोर लगा रही है इसमे राष्ट्रीय पार्टियां भी शामिल है और क्षेत्रीय पार्टियां भी।सभी पार्टियां मीडिया से भरपूर सहयोग भी चाहती है और आपेक्षित सहयोग न मिलने पर गोदी मीडिया या बिकाऊ मीडिया का आरोप लगाने मे जरा भी समय बर्बाद नहीं करती।
किन्तु इस बार भी किसी भी पार्टी के द्वारा अपने घोषणापत्र मे पत्रकारों का कोई जिक्र नहीं है सरकारी स्तर पर यदि कोई घोषणा पत्रकारों के लिए की भी जाती है तो उसका लाभ केवल शासन द्वारा मान्यताप्राप्त पत्रकारों को ही मिल पाता है।जो कि बहुत ही कम होते है।ऐसे मे गैर मान्यताप्राप्त पत्रकारों के लिए कोई भी सुविधा न होना हमेशा पत्रकारो के लिए निराशाजनक ही रहता है।पत्रकारो की संस्था जर्नलिस्ट काउंसिल ऑफ इंड़िया (रजि.) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुराग सक्सेना ने कहा कि मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना गया है सरकार और जनता के बीच की मजबूत कड़ी होता है पत्रकार। ऐसे मे लगातार पत्रकारों की मांगो को नजरअंदाज करना उचित नहीं है।सरकार को मान्यताप्राप्त पत्रकारों के अलावा श्रमजीवी पत्रकारों ग्रामीण क्षेत्रो से जुड़े पत्रकारों व डिजिटल मीडिया से जुड़े पत्रकारों को भी ध्यान में रखकर योजनाओ को लाना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है पहले सरकार यह जानकारी जुटाये कि वर्तमान समय मे कितने लोग पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़े हुए है। पत्रकार सुरक्षा कानून बनाए जाने की मांग पत्रकारों के संगठन बहुत समय से कर रहे है लेकिन कोई भी राजनैतिक पार्टी इसे लाने की पहल नहीं करती क्यों? पत्रकारों के स्वास्थ्य के लिए आयुष्मान भारत योजना से गैर मान्यताप्राप्त पत्रकारों को जोड़ने की भी मांग की जा रही है लेकिन इस पर भी सरकार की ओर से कोई पहल नहीं की गई। वर्तमान समय मे कोरोना महामारी ने विकराल रूप धारण करना फिर शुरू कर दिया है पत्रकार अपनी जान को दांव पर लगाकर अपने काम को अंजाम देते है और इन्ही को लगातार नजर अंदाज किया जाना न्यायोचित नहीं है।